SC on Electoral Bonds Case: इलेक्टोरल बॉन्ड मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने फिलहाल अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग से कहा कि राजनीतिक पार्टियों को 30 सितंबर 2023 तक इलेक्टोरेल बॉन्ड के जरिए कितना फंड मिला है, वह इसका ब्यौरा पेश करे। अदालत ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि चुनाव आयोग के पास राजनीतिक दलों को हुई फंडिंग का डेटा मौजूद नहीं है।
चीफ जस्टिस की बेंच ने चुनाव आयोग की ओर पेश एडवोकेट अमित शर्मा से मुखातिब होते हुए कहा कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अपने अंतरिम आदेश में ही कहा था कि चुनाव आयोग डेटा तैयार रखे, क्योंकि यह उसका दायित्व है। इस पर अमित शर्मा ने कहा कि चुनाव आयोग को लगा था कि अदालत ने अप्रैल 2019 तक का डेटा तैयार करने को कहा है। इस पर जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि अगर आपको दुविधा थी, तो आपको स्पष्टीकरण के लिए आवेदन देना चाहिए था। जब आप अदालत में आते हैं, तो आपके पास डेटा होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम अभी एसबीआई से नहीं कह रहे हैं कि राजनीतिक पार्टियों को फंड देने वाले डोनर की पहचान बताई जाए। इसके लिए कोई इंट्रेस्टेड भी नहीं है। हम इस स्टेज पर यह जानना चाहते हैं कि कितनी मात्रा में इलेक्टोरल बॉन्ड आए हैं। हम आपसे राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये हुई फंडिंग का ब्यौरा चाहते हैं और डोनर की डिटेल आप सील कवर में रखें। साथ ही इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों को कितना फंड मिला है, वह भी बताएं। उसके लिए अलग से सीलबंद लिफाफा पेश किया जाए।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के सामने कई सवाल उठाए। अदालत ने कहा कि यहां रिश्वत और फंड के बदले में फायदा पहुंचाने का सवाल है। साथ ही गोपनीयता का भी मुद्दा है। इस पर केंद्र सरकार ने कहा कि पूर्वानुमान के आधार पर हर डोनेशन को करप्शन की नजर से देखना गलत होगा। कुछ मामले में ऐसा हो सकता है कि बदले में फायदा का मसला हो, लेकिन ज्यादातर वाजिब डोनेशन हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड के पीछे आइडिया यह है कि कैश डोनेशन को रोका जाए और फर्जी कंपनियों के डोनेशन पर लगाम लगाई जाए।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 1996 में एक बड़ी कंपनी द्वारा ट्रस्ट बना, जिसमें 100 कंपनियों से पैसा आता था और फिर सभी राजनीतिक पार्टियों को उससे चंदा दिया जाता रहा। आइडिया यह था कि किसी कंपनी को पता न चले कि पैसा कहां गया। 2013 में चुनाव आयोग ने यह अनिवार्य कर दिया कि कंपनियों का नाम उजागर हो और फिर यह स्कीम फेल हो गई। मेहता ने कहा कि जो शख्स सीधे चंदा देना चाहता है वह चेक से दे सकता है उसके लिए इलेक्टोरल बॉन्ड का ऑप्शन है लेकिन वह चाहे तो चेक से दे सकता है। सरकार की मंशा है कि किसने डोनेट किया यह गुमनाम रहे और क्या अमाउंट दिया यह उजागर न हो।
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि लेकिन आप (सरकार) जानते हैं कि किसने कितना दिया। जैसे ही इलेक्टोरल बॉन्ड जारी होगा तो पता चलेगा कि अमुक पार्टी को गया। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि लेकिन दूसरी पार्टी को नहीं पता चलेगा और डोनर यही चाहता है। डोनर गोपनीयता चाहता है और कानून बनाने वाले ने ऐसा ही सोचा है।
जस्टिस गवई ने इस दौरान सवाल किया कि आप वोटर के अधिकार पर भी बात करें उनका क्या? सॉलिसिटर जनरल ने इस पर कहा कि वोटर का राइट है कि वह जानें कि कौन सी पार्टी क्या पा रही है, उसने डोनर से कोई मतलब नहीं होता। चुनाव की पवित्रता वोटर के वोट देने के अधिकार के ऊपर है। मेहता ने कहा कि वोटिंग इस आधार पर नहीं होता कि किस पार्टी को किसने फंडिंग की है। बल्कि इस आधार पर होता है कि किस पार्टी का नेता कौन है और पार्टी का विजन और सिद्धांत क्या है। बिजनेस हाउस जब डोनेट करते हैं तो वह देखते हैं कि कौन सी पार्टी उन्हें बिजनेस के लिए सही वातावरण मुहैया कराएगा। वह लालफीता शाही और सरकारी दखल से बचना चाहता है। स्कीम फूल प्रूफ है और अगर कोई कमी रह गई है तो उसे बेहतर करने की कोशिश होगी। यह स्कीम ऐसा नहीं है कि रूलिंग पार्टी को पता चले कि डोनेशन कहां से आया है और यह मंशा भी नहीं है।
इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि आप कहना चाहते हैं कि इस स्कीम में रूलिंग पार्टी को पता नहीं कि डोनर कौन है? सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सभी पार्टी को पता होता है कि उनका डोनर कौन है, दूसरे के बारे में पता नहीं होता। अगर कोई श्रीनाथ मंदिर में जाए तो बॉक्स में पैसे डाले तो वह गुमनाम दान है। चीफ जस्टिस ने कहा कि लेकिन ऐसा माना जाता है कि भगवान को सब पता होता है कि किसने क्या दिया। जस्टिस खन्ना ने इस दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि आप सबकुछ ओपन क्यों नहीं कर देते हैं, ताकि सभी जाने कि किसने किसको क्या दिया। वोटर ही वंचित क्यों रहे।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यहां तीन-चार मुद्दे हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड प्रक्रिया ऐसा है कि कैश को कम किया जा सके। दूसरा अथॉराइज्ड बैंकिंग को प्रोमोट किया जाए। तीसरा मसला है कि बैकिंग चैनल के इस्तेमाल को बढ़ावा हो। साथ ही चौथा विचारणीय विषय यह है कि पारदर्शिता की जरूरत है। साथ ही पांचवा विषय यह है कि किकबैक्स (रिश्वत) को वैध करने का जरिया यह न बने और पावर सेंटर द्वारा जिसने डोनेशन दिया है उसे फायदा पहुंचाने का यह जरिया न बने। मामला यह नहीं है कि सिस्टम को आप वापस ले लें। बल्कि आप ऐसा कोई सिस्टम निजात करें कि उसमें खामी न हो। आप सिस्टम ऐसा बना सकते हैं जो संतुलित हो और अनुपातिक हो। लेकिन यह कैसे बनेगा, यह आपको देखना है, यह हमारा काम नहीं है।
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि नेट प्रॉफिट के अनुसार डोनेशन के प्रतिशत पर कैप होना चाहिए। आप कह रहे हैं कि प्रॉफिट का क्राइटेरिया नहीं है तो क्या कोई कंपनी जीरो प्रॉफिट में हो तो वह पूंजी डोनेशन के लिए रखती है। इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि प्रॉफिट और नॉन प्रॉफिट का मामला नहीं है। कंपनी के प्रॉफिट पर डोनेशन का कैप इसलिए नहीं रखा गया है ताकि फर्जी कंपनियों पर अंकुश लग सके नहीं तो स्कीम फेल कर जाएगा।
चीफ जस्टिस ने सवाल किया कि क्या आप कंपनी एक्ट में बदलाव करेंगे और प्रॉफिट का प्रतिशत तय होगा कि इतना प्रतिशत डोनेशन हो सकता है। सॉलिसिटर जनरल ने इस सवाल पर कहा कि हम सिर्फ कह सकते हैं कि प्रॉफिट मेकिंग डोनेट करें, लेकिन कैपिंग नहीं हो सकती है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि कैप इसिलए था कि कंपनी का मकसद बिजनेस करना होता है न कि डोनेशन देना। कैप से कुछ फीसदी डोनेशन हो जाता है।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पहले का अनुभव रहा है कि 10 से 15 फीसदी कुछ कंपनी डोनेशन करना चाहती थी लेकिन 7.5 फीसदी का कैप था। ऐसे में फर्जी कंपनियों के जरिये डोनेशन का प्रचलन होगा ऐसे में जो भी कंपनी जितना देना चाहे वह दे सकते हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि इसके लिए यह हो सकता है कि कंपनी इतनी साल पुरी हो और इतना टर्न ओवर हो आदि आदि। हम सरकार की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहे, हम प्रक्रिया का सम्मान करते हैं।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कोई कंपनी जितना देना चाहे दे हम फर्जी कंपनियों को रोकना चाहते हैं और कैश क्लीन सिस्टम चाहते हैं। जस्टिस खन्ना ने कहा कि दो टकराव है। एक तो गोपनीयता और दूसरा किकबैक (रिश्वत) और बदले में फायदा पहुंचाने की बात। चीफ जस्टिस ने कहा कि क्या ये सही होगा कि कोई कंपनी 100 फीसदी डोनेट करे। ऐसा परोपकारी मंशा होती है ? इस पर सॉलिसिटर जनरल ने दोहराया कि आइडिया है कि कैश क्लीन सिस्टम हो और फर्जी कंपनियों को रोका जाए। इसके बाद सॉलिसिटर जनरल ने स्कीम के बारे में बताया।