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दिल्ली में चल रही बसे डीटीसी की या किसी और की, जाने?

दिल्ली में जनता को सच दिखाने वाले राष्ट्रीय समाचार पत्र और टीवी चैनल वाले दिल्ली में डीटीसी का बैनर लगा कर चल रही बसों को डीटीसी बस बता कर जनता को गुमराह करने में लगे हैं पर क्यों? यह बड़ा सवाल है।

दिल्ली में जब से आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तब से दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के लिए एक भी बस नही खरीदी गई और जो बसे पूर्व की कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में डीटीसी के लिए खरीदी गई थीं उनकी समय सीमा पूरी हो चुकी है। डीटीसी के नाम में जो बसे है वह है हरे और लाल रंग की ना की नीले रंग की।

संतरी रंग और गहरे नीले रंग की बसे कलस्टर कंपनियों की है और हल्के नीले रंग की इलेक्ट्रिक बसे भारत सरकार द्वारा प्रदान सब्सिडी के बावजूद कलस्टर की तरह ही अन्य कंपनियों की है और इन सभी बसों में बस चलाने वाले ड्राईवर बस कंपनी की तरफ़ से लगाए जाते है ना की डीटीसी के।

 

पूर्व में दिल्ली की सड़को पर जनता को सवारी सेवा प्रदान करने वाली रेड लाइन और ब्लू लाईन को न्यायालय ने यह कहते हुए बंद करने के दिशा निर्देश जारी किए थे की इनसे जनता की सुरक्षा की जगह असुरक्षा ज्यादा हो रही है फिर किस आधार पर दिल्ली सरकार और परिवहन विभाग द्वारा दिल्ली में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश को दरकिनार कर दिल्ली की जनता की जिन्दगी को फिर से असुरक्षित कर दिया और दिल्ली में सार्वजनिक सवारी सेवा में चलने वाली सभी बसे प्राइवेट ऑपरेटर्स/ प्राइवेट कम्पनी द्वारा प्रदान कर दी और दिल्ली में प्रमुख समाचार पत्र जिन्होंने रेड लाइन और ब्लू लाइन को बंद करवाने के लिए अपनी अखबारों के पन्ने भर दिए थे आज प्राइवेट बसों को डीटीसी क्यों बता कर जनता और न्यायालय को गुमराह कर रहे हैं। बड़ा सवाल?

 

दिल्ली में लगातार दिल्ली सरकार और परिवहन आयुक्त द्वारा माननीय सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देश को दरकिनार कर प्राइवेट ऑपरेटर्स द्वारा बसे लेकर दिल्ली की सड़को पर चलवा दी और समाचार पत्र और मीडिया हादसे की खबरे तो छाप रहे है पर जिन के खिलाफ आवाज उठाने की आवश्यकता है उसकी जगह डीटीसी को बदनाम करने में लगे हैं जब की वह भली भांति जानते हैं कि यह बसे जो हादसे कर रही है डीटीसी द्वारा संचालित नही है फिर भी जनता के साथ माननीय सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय दिल्ली को गुमराह कर रहे हैं।

 

संजय बाटला

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